dussehra

आइए सुनते हैं दशहरा से जुड़े पांच
कहानियां किसी भी त्योहार को मनाने के
पीछे उसके सारे कारण होते हैं यदि एक ऐसा
पर्व है जिसे जुड़ी हुई बहुत सारी
कहानियां आज हम आपको
दशहरा से जुड़ी हुई कहानियां से अवगत करेंगे


जिसमें राम और रावण दशहरा की कहानी पांडव
और कौरव की कहानी
दुर्गा माता और महिषासुर की दशरथ की कहानी के
बारे में जानकारी प्रदान करें पहले लंका
पति रावण पर भगवान राम की विजय
है रामायण के अनुसार भगवान विष्णु के
सातवें अवतार और अयोध्या के राजकुमार श्री
राम अपने पिता की आज्ञा से चौथे वर्ष का
वनवास भोग रहे थे इसी दौरान
लंकाधिपति और राक्षसराज रावण ने उनकी
पत्नी सीता का हरण कर लिया और उन्हें लंका
ले गया अपने भाई लक्ष्मण से हनुमान और
वानर सेना की सहायता से श्रीराम ने रावण
की शांति और युद्ध में विजय प्राप्त की थी
जिस दिन रावण की मृत्यु हुई वह भी अश्विन
मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि इसलिए इसे
विजयादशमी या दशहरा भी कहा जाता है बुरई के अंत
के विपरीत आत्म रूप में इस दिन लोग रावण
उसके भाई कुंभकरण और पुत्र मेघनाथ के
पुतलों का दहन करते हैं देवी दुर्गा
द्वारा महिषासुर का वध पौराणिक कथाओं के
अनुसार महिषासुर नामक एक शक्तिशाली राक्षस
था जिसका मुख्य भैंस का था उसने ब्रह्मा
जी से वरदान ले लिया था कि उसकी मृत्यु
किसी मानव दैत्य व देवता के हाथों को किसी
स्त्री के हाथों में हो इसके बाद वरदान की
शक्ति से उसके तीनों लोकों पर अधिकार कर
लिया महिषा सुर के आतंक से छुटकारा दिलाने
के लिए देवताओं ने देवी आर्थिक शक्ति का
आह्वान किया इस आह्वान के दौरान सभी
देवताओं के शरीर से एक ऊर्जा निकली और 10
हाथों वाली एक सुंदर स्त्री यानि आदि
शक्ति के अवतार
के रूप में प्रकट हुई लिए सभी देवताओं ने
अपने अपने अस्त्र शस्त्र देवी दुर्गा को
दे दिए मां दुर्गा ने महिषासुर के साथ
पूरे नौ दिनों तक युद्ध किया और अंततः
दसवें दिन यानि अश्विन माह के शुक्ल पक्ष
की दशमी को उसका वध कर दिया विजय के इस
पर्व को याद करते हुए दुर्गा पूजा मनाई
जाती है सती पार्वती की घर वापसी
भगवान ब्रह्मा के पुत्र
प्रजापति दक्ष की चौबीस पुत्रियों में से
एक थी देवी सती ,सती भगवान शंकर की पत्नी थी एक


बार दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमें
महादेव को छोड़कर सभी देवताओं को आमंत्रित
किया अपने पति के इस अपमान पर सती बहुत
क्रोधित हुई और यह कि अग्नि पुत्र गई कि
जब भगवान शंकर को इसका पता चला तो वह
क्रोध से भर गए और सती के मृत शरीर को
कंधे पर उठाकर तांडव करने लगे उनके तांडव
से पूरे जगत में हाहाकार मच गया महादेव को
शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने
चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए कुछ
समय के बाद सती ने पर्वतराज हिमालय की
पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया और
उन्हें शिव की पत्नी बनी इसके बाद भगवान
विष्णु ने महादेव को प्रजापति दक्ष को
क्षमा करने के लिए कहा ऐसा माना जाता है
कि तभी से शरद ऋतु के दौरान पार्वती अपने
पिछले जन्म के माता-पिता से मिलने आती हैं
इसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है


और 10 में तीन देवी की प्रतिमा को पानी
में विसर्जित करके उन्हें घर के लिए
प्रस्थान क्यों कहा जाता है पांडवों के
अज्ञातवास की समाधि
महाभारत की कथा के अनुसार पांडवों को चौपट
कर खेल में हराने और उसका सब कुछ छीन लेने
के बाद उनके चचेरे भाई दुर्योधन ने उन्हें
12 वर्ष वनवास और 1 वर्ष अज्ञातवास भंग
करने के लिए भेज दिया था 12 वर्ष वनवास के


अज्ञातवास से पहले पांडवों ने मध्य प्रदेश
की सीमा के पास एक शमी वृक्ष अपने
अस्त्र शास्त्र अस्त्र शास्त्र इसके बाद पांडव और उनकी पत्नी
ने रूप और नाम बदलकर मतदान में शरण ली
इस समय दुर्योधन चाहता था कि पांडवों के
अज्ञातवास का पता चलता है और ऐसा होने पर
पहले से निश्चित वचन के अनुसार उन्हें
उन्हें वर्ष का वनवास भोगना पड़े है
इसलिए जगह-जगह अपने दूत बेचकर वह पता
लगाने लगा कि पांडव कहां छुपे हुए इस बात
का अंदेशा होने पर कि वे मत सुदेश में उग
सकते हैं दुर्योधन ने अपने पिता और राजा
धृतराष्ट्र को समझा-बुझाकर मत देश पर
आक्रमण कर दिया बस नरेश विराट ने अपने
पुत्र उत्तर को कौरव सेना से लड़ने के लिए
भेजा अर्जुन जो नृत्य की प्रेरणा का रूप
लेकर राजा विराट के यहां सेवा करता था
राजकुमार उत्तर का सारथी रथ को
शमी वृक्ष के पास ले गया यह विजयदशमी का दिन था और
अज्ञातवास का भी अंतिम दिवस था इसलिए
अर्जुन ने वृक्ष अपने सभी अस्त्र-शस्त्र
निकाले और पूरी कौरव सेना को अकेले ही
पराजित कर दिया
इस कोर्स की गुरु दक्षिणा आदि वरतंतु का
इशहाक आप अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद
जब कौत्स ने ऋषि से गुरुदक्षिणा मांगने को
कहा ऋषि वरतंतु ने उसे यह कहते हुए मना
किया के विद्या देने के बदले में कुछ भी
नहीं लेना चाहता तथा पीकोस के बार-बार
उन्हें करने पर ऋषि ने कहा कि यदि तुम
मुझे गुरुदक्षिणा देने का इतना आग्रह कर
रहे हो तो 14 विद्याएं मैंने तुम्हें
सिखाती हैं उन्हें प्रत्येक के लिए एक
करोड़ अर्थात कुल 14 करोड़ स्वर्ण
मुद्राएं मुझे तो ऋषि के ऐसा कहने पर
ब्राह्मण पुत्र कौत्स अयोध्या के राजा रघु
के पास पहुंचा राजा रघु जो प्रभु श्रीराम
के पूर्वज स्थित मैं अपनी दानवीरता के लिए
प्रसिद्ध थे हालांकि उस समय रघु अपनी सारी
संपत्ति ब्राह्मणों को दान कर चुके थे ऐसे
में रघु ने देवराज इंद्र से सहायता मांगी
इंद्र ने तत्काल धन के देवता कुबेर को
स्वर्ण मुद्राएं बनाने का आदेश दिया और
रघु के राज्य अयोध्या में शमी और अपत्या
कठपुतली के पेड़ों पर इन स्वर्ण मुद्राओं
की वर्षा करती राजा रघु ने सारी मुद्राएं
कौशिक उदयवीर कौत्स ने वरतंतु को
गुरुदक्षिणा के रूप में मुद्राएं थी किंतु
ऋषि ने उनमें से केवल 14 करोड़
स्वर्ण-मुद्राओं रखें कॉर्ड्स को धन में
कोई रुचि नहीं थी इसलिए उन वह बची हुई
मुद्राएं लेकर उन्हें राजा रघु के पास गया
लेकिन एक बार दिया हुआ दान लेने से रघु ने
मना कर दिया अंतत कौत्स ने अश्विन शुक्ल
दशमी के दिन सारी मुद्राएं
अयोध्यावासियों को दान करते हैं

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